Thursday 30 June 2016

The Battle of Badr जंग_ए_बदर‬ Jange Badra غزوة بدر

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना से रवाना हुए तो 313 सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा आपके साथ थे । जिनमें से 86, 82 या 83 मुहाजिर थे और बाक़ी अन्सार । फिर अन्सार में से 61 सहाबा क़बीला औस में से थे और 170 क़बीला ख़ज़्रज में से । सामान व सवारी वग़ैरह का यह हाल था कि पूरे लश्कर में सिर्फ़ 2 घोड़े और सत्तर ऊँट थे । एक घोड़ा हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम का और दूसरा हज़रत मिक़दाद बिन अस्वद का । ऊँटो पर दो-दो तीन-तीन आदमी बारी-बारी सवार होते थे । एक ऊँट पर हज़रत अली और हज़रत अबू लूबाबा रज़ियल्लाहु अन्हु और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बारी-बारी सवार होते थे । जब रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पैदल चलने की बारी आती तो हज़रत अबू लूबाबा और हज़रत अली अर्ज़ करते कि हज़रत! आप सवार हो जाये हम आपके बदले पैदल चलेंगे । आप फ़रमाते: तुम चलने में मुझसे ज़्यादा तक़तवर नहीं हो । मदीने का इन्तिज़ाम और नमाज़की इमामत पहले हज़रत इब्ने उम्मे मक्तूम को सौंपी गयी लेकिन जब नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रौहा तक पहुँचे तो आपने हज़रत अबू लूबाबा बिन अब्दुल-मुन्ज़िर को मदीने का हाकिम बनाकर वापस भेज दिया ।
लश्कर को इस तरह तक़सीम किया गया कि एक लश्कर मुहाजिरीन का और दूसरा अन्सार का बनाया गया । मुहाजिरीन का झण्डा हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु को दिया गया और अन्सार का झण्डा हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को, और जनरल कमान का झण्डा हज़रत मुस्अब बिन उमैर को दिया गया, जिसका रंग सफ़ेद था । मैमना (यानी लश्कर का दायाँ हिस्सा) का अफ़सर हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु को बनाया गया और मैमरा (यानी लश्कर का बायाँ हिस्सा) का अफ़सर हज़रत मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु को बनाया गया । साक़ा (लश्कर के पीछे के हिस्से) का अफ़सर हज़रत क़ैस बिन सअसा रज़ियल्लाहु अन्हु को बनाया और सिपहसालारे आला की हैसियत से पूरे लश्कर की कमान हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ख़ुद संभाली ।।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पेज 320)
नूरानी छप्पर
जब सहाबा किराम चश्मे पर पड़ाव डाल चुके तो हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु की राय से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिये एक छप्पर टीले पर डाला गया, जहाँ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ियाम करें और पूरी तरह जंग का मुआयना (देखभाल) कर सकें ।
हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के नबी! क्या हम आपके लिये एक छप्पर न बना दें जिसमें आप तशरीफ़ रखें और सवारियाँ आपके क़रीब तैयार रखें, फिर हम दुश्मन से जाकर मुकाबला करें । पस अगर अल्लाह ने हमको इज़ज़त दी और दुश्मन पर ग़लबा (जीत) अता फ़रमाया तो ये हमारी दिली तमन्ना होगी, और अगर ख़ुदा न करे दूसरी सूरत पेश आई (यानी हार हुई) तो आप सवार होकर हमारी क़ौम के बाक़ी लोगों से जा मिलें, जो पीछे रह गये है । ऐ पैग़म्बरे ख़ुदा! हम उनसे ज़्यादा आप से मुहब्बत करने वाले नहीं, अगर उन्हें यह अन्दाज़ा होता कि आपका जंग से वास्ता पड़ेगा तो वे हरगिज़ पीछे न रहते । शायद अल्लाह तआला उनके ज़रिये आपकी हिफ़ाज़त फ़रमाता और वे निहायत ख़ैरख़्वाही और इख़्लास (सच्चे दिल से) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ जिहाद करते । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सअद बिन मुआज़ की तारीफ़ की और उनके लिये दुआ-ए-ख़ैर फ़रमाई । इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिये मैदाने जंग के उत्तरी पूर्व के एक ऊँचे टीले पर छप्पर बना दिया गया, जहाँ से पूरा मैदाने जंग दिखाई पड़ता था । फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कैम्प की हिफ़ाज़त के लिये हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु की कमान में अन्सारी नौजवानों का एक दस्ता मुक़र्रर किया गया, उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके ग़ार के साथी हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु छप्पर में दाख़िल हुए और दो रक्अत नमाज़ पढ़ी और हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु छप्पर के दरवाज़े पर तलवार लेकर खड़े हो गये ।
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते है कि जिस रात की सुबह को लड़ाई होने वाली थी, उस रात में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमको मैदाने जंग की तरफ़ लेकर चले ताकि मक्के वालों के क़त्ल होने की जगह हमको आँखों से दिखला दें । चुनाँचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने मुबारक हाथ से इशारा फ़रमाते जाते थे और यह कहते जाते थे कि यह है फ़ुलाँ की क़त्ल गाह इन्शा-अल्लाह । और सुबह को क़त्ल होने की जगह पर हाथ रखकर नाम-बनाम उसी तरह सहाबा को बताते रहे । क़सम है उस ख़ुदा की जिसने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को हक़ देकर भेजा, कोई एक भी उस जगह से बाल बराबर भी हटकर क़त्ल न हुआ जहाँ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने मुबारक हाथ से उसके क़त्ल होने की तरफ़ इशारा फ़रमाया था ।। (मुस्लिम शरीफ़, ज़रक़ानी)
(सीरते मुस्तफ़ा जिल्द 1 सफ़ा 414 और 416)
हज़रत आतिका बिन्ते अब्दुल-मुत्तलिब का ख़्वाब
इधर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा को यह ख़बर दी कि मुझको क़ौम की पछाड़े जाने की जगह दिखलाई गयी और अल्लाह तआला ने मुझसे यह वायदा फ़रमाया है कि अबू जहल या अबू सुफ़ियान की दो जमाअतो में से किसी एक जमाअत पर ज़रूर फ़तह व नुस्रत अता करूँगा । चुनाँचे अल्लाह तआला ने फ़रमाया:
तर्जुमा:- और (तुम लोग उस वक़्त को याद करो) जबकि अल्लाह तआला तुमसे उन दो जमाअतो में से एक वायदा करते थे कि वह तुम्हारे हाथ आ जाएगी, और तुम इस तमन्ना में थे कि हथियारों से खाली जमाअत (क़ाफ़िला) तुम्हारे हाथ आ जाये, और अल्लाह तआला को यह मंजूर था कि अपने अहकाम से हक़ का हक़ होना (अमली तौर पर) साबित कर दे, और उन क़ाफ़िरो की बुनियाद (और ताक़त) को काट दे । (7) ताकि हक़ का हक़ होना और बातिल का बातिल होना (अमली तौर पर) साबित कर दे, अगरचे ये मुजरिम लोग ना-पसंद ही करें । (8)
(सूर: अनफ़ाल)
उधर मक्का मुकर्रमा में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की फूफी आतिका बिन्ते अब्दुल-मुत्तलिब ने ज़मज़म ग़िफ़ारी के मक्का पहुँचने से पहले यह ख़्वाब देखा कि एक आदमी जो ऊँट पर सवार था, आया और अब्तहा में ऊँट बैठाकर ज़ोर-ज़ोर से यह कह रहा है- ऐ अहले ग़दर (धोखा देने वाले )! अपने क़त्ल होने और पछाड़े जाने की जगह की तरफ़ तीन दिन में निकल जाओ । लोग उसके आसपास जमा हो गये, फिर वह अपना ऊँट लिये हुवे मस्जिदे हराम में गया और फिर यही आवाज़ दी, उसके बाद जबले अबी क़ुबैस (यह पहाड़ का नाम है) पर चढ़ा और उपर से पत्थर की एक चट्टान फेंकी, जब वह चट्टान पहाड़ के दामन में पहुँची तो चूरा-चूरा हो गयी और मक्के का कोई घर ऐसा न रहा जिसमें उसका कोई टुकड़ा न गिरा हो । आतिक़ा ने यह ख़्वाब अपने भाई हज़रत अब्बास से बयान किया और कहा ऐ भाई! ख़ुदा की क़सम आज मैंने यह ख़्वाब देखा है और मुझको डर है कि तेरी क़ौम पर कोई बला या मुसीबत आने वाली है । देखो इस ख़्वाब को किसी से बयान न करना । हज़रत अब्बास घर से बाहर निकले और अपने दोस्त वलीद बिन उतबा से इस ख़्वाब को बयान किया और यह ताक़ीद की कि इस ख़्वाब के बारे में किसी और से ज़िक्र न करना । मगर वलीद ने अपने बाप उतबा से यह ख़्वाब बयान कर दिया, इस तरह यह बात सारे मक्का में फैल गयी ।
इस बात के दूसरे या तीसरे दिन हज़रत अब्बास ख़ाना काबा में गये तो देखा कि अबू जहल कुछ लोगों के साथ वहाँ बैठा है । अबू जहल ने हज़रत अब्बास को देखते ही कहा ऐ अबुल-फ़ज़्ल! तुम्हारे मर्द तो नुबुवत के दावेदार थे ही अब तुम्हारी औरतें भी नुबुवत का दावा करने लगीं? पूछा क्या बात हुई? अबू जहल ने आतिक़ा के ख़्वाब का ज़िक्र किया । इसी बीच ज़मज़म ग़िफ़ारी अबू सुफ़ियान का पैग़ाम लेकर इस अंदाज़ से मक्का पहुँचा कि कुर्ता फाड़ रखा है और ऊँट की नाक कटी हुई है और यह पुकारता आ रहा है कि ऐ क़ुरैश की जमाअत! अपने क़ाफ़िले की ख़बर लो और जल्दी से जल्दी अबू सुफ़ियान के क़ाफ़िले की मदद को पहुँचो । यह ख़बर सुनते ही क़ुरैश पूरे जंगी सामान और तैयारी के साथ मक्के से निकल खड़े हुए और बदर में पहुँचकर इस ख़्वाब (सपने) की ताबीर अपनी आँखों से देखी ।।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पेज 333-334)
जंग की तैयारी
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते है कि बदर की रात में कोई आदमी हम में ऐसा न था जो सो न रहा हो सिवाय नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के, कि आपने पूरी रात नमाज़ और अल्लाह तआला से दुआ करने में गुज़ार दी । फ़जर का वक़्त होते ही आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आवाज़ दी ऐ अल्लाह के बन्दो! नमाज़ का वक़्त आ गया । आवाज़ सुनते ही सब इकट्ठा हो गये । आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक पेड़ के नीचे खड़े होकर सबको नमाज़ पढ़ाई और नमाज़ से फ़ारिग़ होकर अल्लाह के रास्ते में जाँबाज़ी, बहादुरी और सरफ़रोशी (जान की बाज़ी लगाने) की तरग़ीब (प्रेरणा) दी, उसके बाद आपने सहाबा की सफ़ो को सीधा किया । उधर क़ाफ़िरो की सफ़े तैयार थी, रमज़ान की सत्रह तारीख़ और जुमे का दिन । एक तरफ़ से हक़ यानी अल्लाह वालों की जमाअत दूसरी तरफ़ से बातिल यानी बुत के पुजारियों की जमाअत मैदाने जंग की तरफ़ बढ़ी ।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब क़ुरैश की अज़ीमुश्शान (बहुत बड़ी) जमाअत को पूरे जंगी साज़ व सामान के साथ मैदाने जंग की तरफ़ बढ़ते देखा तो अल्लाह की बारगाह में ये अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह! यह क़ुरैश का गिरोह है जो तकब्बुर और गुरूर (घमण्ड) के साथ मुकाबले के लिये आया है, तेरी मुख़ालफ़त करता है, तेरे भेजे हुवे पैग़म्बर को झुठलाता है । ऐ अल्लाह! अपनी फ़तह और मदद नाज़िल फ़रमा, जिसका तूने मुझसे वायदा फ़रमाया है । ऐ अल्लाह! आज इन्हें ऐठ कर रख दे ।
तभी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उतबा बिन रबीआ को उसके एक सुर्ख़ ऊँट पर देखकर फ़रमाया- अगर क़ौम में से किसी के पास ख़ैर है तो सुर्ख़ ऊँट वाले के पास है । अगर लोगों ने उसकी बात मान ली तो सही रास्ता पा लेंगे । उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सफ़ो (मुजाहिदीन की पंक्तियों) को दुरुस्त फ़रमाया । सफ़े ठीक करते वक़्त एक अजीब वाक़िआ पेश आया । आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथ में एक तीर था जिसके ज़रिये आप सफ़े सीधी फ़रमा रहे थे कि सफ़ में से सवाद बिन गज़िय्याह कुछ आगे निकले हुवे थे । आपने उनके पेट पर तीर का दबाव डालते हुवे फ़रमाया- सवाद! बराबर हो जाओ । सवाद ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल! आपने मुझे तक़लीफ़ पहुँचाई है इसका बदला दीजिए । आपने अपना पेट खोल दिया और फ़रमाया- बदला ले लो । सवाद आपसे चिमट गये, आपके पेट को चूमने लगे और कहा या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम शायद यह आख़िरी मुलाक़ात हो । आप ख़ुश हुवे और हज़रत सवाद रज़ियल्लाहु अन्हु के लिये दुआ-ए-ख़ैर फ़रमाई ।
फिर जब तमाम सफ़े ठीक कर ली गयी तो आपने फ़रमाया- जब तक आख़िरी हुक्म न पहुँच जाये जंग शुरू न करें, और जंग के तरीक़े के बारे में समझाया कि जब मुश्रिकीन जमघट करके तुम्हारे क़रीब आये तो उन पर तीर चलाना और अपने तीर बचाने की कोशिश करना । और जब तक वे तुम पर छा न जाये तलवार न खींचना, यानी पहले ही से फ़ुज़ूल तीर अन्दाज़ी करके तीर ख़राब व बरबाद न करना । इसके बाद आप और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु छप्पर के अन्दर गये और हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु छप्पर के दरवाज़े पर तलवार लेकर खड़े गये ।
दूसरी तरफ़ मुश्रिकीन की हालात यह थी कि अबू जहल ने अल्लाह तआला से फ़ैसले की दुआ की । उसने कहा ऐ अल्लाह! हम में से जो फ़रीक़ रिश्तेदारी को ज़्यादा काटने वाला और ग़लत हरकते ज़्यादा करने वाला हो तू उसे आज तोड़ दे । ऐ अल्लाह तआला! हम में से जो फ़रीक़ तेरे नज़दीक़ ज़्यादा महबूब और पसंदीदा है आज उसकी मदद फ़रमा ।।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पेज 334-336)
मैदान-ए-जंग में उतबा की तक़रीर
जंग शुरू होने से पहले उतबा ने अपने सब साथियों से यह कहा कि ऐ क़ुरैश की जमाअत! अल्लाह की क़सम तुमको मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उसके साथियों से जंग करके कोई फ़ायदा न होगा, ये सब तुम्हारे रिश्तेदार है । नतीजा यह होगा कि तुम अपने बाप और भाईयों की लाशो को देखोगे । मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और अरब को छोड़ दो, अगर अरब ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को ख़त्म कर दिया तो तुम्हारी मुराद पूरी हो जाऐगी और अगर अल्लाह ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कामयाब कर दिया तो यह भी तुम्हारे लिये इज़्ज़त की बात होगी, क्योंकि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हारी ही क़ौम के है । उनकी जीत तुम्हारी जीत है । देखो मेरी नसीहत को रद्द न करो और मुझको बेवकूफ़ और नादान न समझो ।
अबू जहल यह सुनते ही गुस्से से भड़क उठा और हका कि उतबा इसलिये लड़ाई से जान चुराता है कि उसका बेटा अबू हुज़ैफ़ा मुसलमानों के साथ है, ताकि उसपर कोई आँच न आये । ख़ुदा की क़सम हम हरगिज़ वापस न जाऐगे जब तक अल्लाह हमारे और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बीच फैसला न कर दे, और अमर बिन हज़रमी के भाई आमिर बिन हज़रमी को बुलाकर कहा कि यह तेरा दोस्त उतबा लोगों को वापस ले जाना चाहता है और तेरे भाई का ख़ून तेरी आँखों के सामने है । आमिर ने सुनते ही हय अमर हाय अमर चिल्लाना शुरू किया, जिससे तमाम फ़ौज में जोश फैल गया और सब लड़ाई के लिये तैयार हो गये ।।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पेज 336)
जंग की शुरुआत
अबू जहल के तानों का यह असर हुआ कि उतबा भी हथियार सजाकर जंग के लिये तैयार हो गया और मक्के वालों के लश्कर में से सबसे पहले उतबा ही अपने भाई शैबा और अपने बेटे वलीद को लेकर मैदान में आया और ललकार कर अपने मुक़ाबले के लिये बुलाया । इस्लामी लश्कर में से तीन आदमी मुक़ाबले के लिये निकले, हज़रत औफ़, हज़रत मुअव्विज़ हारिस के बेटे, और हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) । उतबा ने पूछा तुम कौन हो? इन लोगों ने कहा हम अन्सार की जमाअत में से है । उतबा ने कहा हमको तुमसे मतलब नहीं, हम तो अपनी क़ौम से लड़ना चाहते है, और ललकार कर यह आवाज़ दी-
हफ़ीज़ जालंधरी ने उनके क़ौल को इस तरह बयान किया है:
पुकारा ऐ मुहम्मद! भेज मेरे हम-नबरदो को
न कर इन काश्तकारो के मुक़ाबिल शेर-मर्दो को ।
सुना है इस निराली फ़ौज में क़ुरैशी भी शामिल है
वही आये वही हम-रुतबा-व-मद्दे मुक़ाबिल है ।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन तीनों को वापस बुला लिया और हज़रत हमज़ा, हज़रत अली और हज़रत उबैदा बिन हारिस रज़ियल्लाहु अन्हुम को नाम ले लेकर मुक़ाबले को भेजा ।
हुक्म मिलते ही ये तीनों मुक़ाबले के लिये निकले । चेहरों पर चूँकि नक़ाब थे इसलिये उतबा ने पूछा तुम कौन हो? सबने अपने अपने नाम बताये । उतबा ने कहा हाँ तुम हमारे जोड़ और बराबर के हो, और रुतबे व इज़्ज़त वाले हो ।
इब्ने सअद कि रिवायत में है कि हुज़ूरे पुरनूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- ऐ बनी हाशिम! उठो उस हक़ के साथ जिसको अल्लाह तआला ने तुम्हारे नबी को देकर भेजा है । ये बातिल (झूठ) को लेकर अल्लाह का नूर बुझाने आये है । उसके बाद जंग शुरू हो गयी । हज़रत अमीर हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु का मुक़ाबला शैबा से हुआ, हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु का मुक़ाबला उतबा से हुआ और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु वलीद के मुक़ाबले पर डटे । मगर मूसा बिन उक़बा रह. की रिवायत यह है कि हज़रत उबैदा शैबा के और हज़रत हमज़ा उतबा के मुक़ाबिल हुए ।
ग़र्ज़ कि जंग शुरू हो गई । हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने तो अपने-अपने मुक़ाबिल का एक ही वार में काम तमाम कर दिया, मगर हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ख़ुद भी ज़ख़्मी हुए और अपने मुक़ाबिल उतबा को भी ज़ख़्मी कर दिया, आख़िरकार उतबा ने हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु पर तलवार का ऐसा वार किया जिससे हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु का पैर पिण्डली से कट गया । हज़रत हमज़ा और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु अपने मद्दे मुक़ाबिलों से फ़ारिग़ हो-होकर हज़रत उबैदा की मदद को पहुँचे, और उतबा का काम तमाम कर दिया और हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु को उठाकर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में ले आये । हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु की पिण्डली से ख़ून बह रहा था, हज़रत उबैदा ने पूछा या रसूलुल्लाह! क्या मैं शहीद हूँ? आपने फ़रमाया- हाँ । इस पर हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा काश अगर अबू तालिब ज़िन्दा होते तो यक़ीन करते कि उनके इस शे'र के हम ज़्यादा हक़दार है:
तर्जुमा:- हम मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को उस वक़्त दुश्मनों के हवाले कर सकते है जबकि हम सब उनसे पहले क़त्ल कर लिये जाये और अपने बेटों और बीवियों से बेख़बर हो जाये ।
उसके बाद हज़रत उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने ये शे'र पढ़ा:
तर्जुमा:- अगरचे क़ाफ़िरो ने मेरा पैर काट दिया तो कोई हर्ज नहीं, इसके बदले में अल्लाह तआला से बहुत ही बुलन्द ऐश का उम्मीदवार हूँ । यानी पैर कट जाने से यह ज़िन्दगी ख़त्म हो जायेगी मगर इसके बदले में ऐसी ज़िन्दगी मिलेगी जो कभी ख़त्म नहीं होगी ।।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पेज 337-339)
मुक़ाबले की झलक
मैदान-ए-जंग और मुक़ाबले की तस्वीर "शाहनामा-ए-इस्लाम" में शायरे इस्लाम जनाब हफ़ीज़ जालन्धरी ने यूँ खींची है ।
हज़रत अमीर हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु और उतबा का मुक़ाबला
यकायक सब ने देखा खींच ली तलवार उतबा ने
किया हमज़ा के सर पर एक कारी वार उतबा ने ।
नज़र कुछ भी न आया झनझनाहट की सदा आई
उड़ी चिगारियाँ, तलवार से तलवार टकराई ।
ज़रा मोहलत जो पाई एक पल धावे से हमज़ा ने
सुबुक होकर निकाला हाथ उलझावे से हमज़ा ने ।
लिया दुश्मन को बढ़कर तेग़े फ़रख़े फ़ाल के नीचे
मगर उतबा ने सर अपना छुपाया ढाल के नीचे ।
पड़ी तलवार फ़ौलादी सिपर के हो गये टुकड़े
सिपर से ता ब-सर पहुँची तो सर के हो गये टुकड़े ।
गुलू में भी न अटकी सीना काटा दिल जिगर काटा
लहू काटा जिगर का बन्द जन्ज़ीरे कमर काटा ।
गले के हार जन्ज़ीरों की लड़ियाँ काटकर निकली
ज़िरह बख़्तर के बन्धन और कड़ियाँ काटकर निकली ।
ये बर्क़े नूर थी बातिल का क़िस्सा पाक कर आई
गिरी यक-लख़्त और दो-लख़्त करके ख़ाक कर आई ।
शेर-ए-ख़ुदा हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और वलीद का मुक़ाबला
उधर हमज़ा के हाथों उतबा फ़र्शे ख़ाक पर लेटा
अली से था इधर तेग़-आज़मा मक़्तूल का बेटा ।
पिदर के ख़ून से मुँह हो गया गुस्से में लाल उसका
भड़क उठा बदन पर मिस्ले शोला बाल-बाल उसका ।
अलम की और चौकस होके तेग़े आबदार उसने
किये बढ़कर संभलकर पै-ब-पै सात-आठ वार उसने ।
अली इस शान से रद्द कर रहे थे उसके वारों को
कि होता था ताज्जुब नौजवानों पुख़्ताकारों को ।
ज़िरह बख़्तर को उलझन, चार आईनों को सकता था
मगर उतबा का बेटा वार करने से न थकता था ।
यकायक वार ख़ाली देके हैदर को जलाल आया
कि नाजुक वक़्त गुज़रा जा रहा है यह ख़्याल आया ।
किया नारा हमारा भी तो ले इक वार ओ क़ाफ़िर
संभल देख आई है अल्लाह की तलवार ओ क़ाफ़िर ।
सदा-ए-शेरे हक़ से छाई हैबत क़ल्बे दुश्मन पर
सिपर उठने न पाई थी कि आई तेग़ गर्दन पर ।
नवेदे फ़त्ह टकराई ज़मीनों आसमानों से
कि उतरा बारे सर एक हस्ती-ए-बातिल के शानों से ।
हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दुआ
उतबा और शैबा के क़त्ल के बाद जंग का मैदान गर्म हो गया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम छप्पर से बाहर आये और सहाबा की सफ़ो को बराबर किया और फिर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को साथ लेकर छप्पर में दाख़िल हुवे और सअद बिन मुआज़ तलवार लेकर छप्पर के दरवाज़े पर खड़े हो गये । हुज़ूरे पुरनूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब अपने दोस्तों यानी साथियों की क़िल्लत (कम संख्या), निहत्तेपन और दुश्मनी की बहुत ज़्यादा तायदाद और ताक़त व लोहे में ग़र्क़ सिपाहियों को देखा तो नमाज़ के लिये खड़े हो गये और दो रक़्अत नमाज़ पढ़कर दुआ करने लगे कि ऐ अल्लाह! मैं तेरे अहद और वायदे के पूरा होने की दरख़्वास्त करता हूँ । हुज़ूरे पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ख़ुशू व ख़ुज़ू (गिड़गिड़ाने व आजिज़ी) की एक ख़ास कैफ़ियत (हालत) तारी थी, कभी सज्दे में सर रखकर दुआ करते, कभी आजिज़ी व बन्दगी के अंदाज़ में हाथ फैला-फैलाकर अल्लाह से फ़तह और कामयाबी की दुआ माँगते, दुआ में खो जाने की यह हालत थी कि कन्धे मुबारक से चादर गिर पड़ती थी और आँखों से मुसलसल (लगातार) आँसुओं की लड़ियाँ बह रही थी ।
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते है कि मैंने बदर के मैदान में कुछ लड़ाई की और फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ़ आया, देखा कि आप सज्दे में पड़े हुऐ हैं और "या हय्यु या क़य्यूमु" (ऐ ज़िन्दा ऐ हमेशा रहने वाले) कहते जाते है । मैं लोट गया और फिर मैदान में जाकर लड़ाई में मसरूफ़ (व्यस्त) हो गया । कुछ देर बाद फिर आपकी तरफ़ पलटा और देखा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसी तरह अल्लाह के सामने रो रहे, गिड़गिड़ा रहे और दुआ कर रहे है कि ऐ अल्लाह! तूने मुझसे जो वायदा किया है वह पूरा फ़रमा । ऐ अल्लाह! अगर मुसलमानों की यह जमाअत हलाक (ख़त्म) हो गयी तो फिर ज़मीन पर तेरी इबादत (पूजा) नहीं होगी ।।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, पेज 340-341)
इस दुआ को मशहूर शायर हफ़ीज़ जालन्धरी यूँ बयान करते है:
इलाही ये तेरे बन्दे है तेरी राह में हाज़िर
हुए है सर-ब-कफ़ होकर शहादत-गाह में हाज़िर ।
तेरे पैग़ाम की आयात है जिनकी ज़बानों पर
मदारे क़िस्मते तौहीद है इन चन्द जानों पर ।
अगर अग़यार ने इनको जहाँ से मह्व कर डाला
क़ियामत तक नहीं फिर तुझको कोई पूजने वाला ।
इलाही अब वह अहदे लैलतुल-मेराज पूरा कर
मुहम्मद से जो वादा सो चुका है आज पूरा कर ।

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